Every soul must do worship but how to find the correct way? Sant Rampal Ji has revealed all hidden secrets of true worship, and worshipable Kabir god.
कबीर, गृह कारण में पाप बहु, नित लागै सुन लोय। ताहिते दान अवश्य है, दूर ताहिते होय।। कबीर, चक्की चौंकै चूल्ह में, झाड़ू अरू जलपान। गृह आश्रमी को नित्य यह, पाप पाँचै विधि जान।। भावार्थ:- गृहस्थी को चक्की से आटा पीसने में, खाना बनाने में चूल्हे में अग्नि जलाई जाती है। चौंका अर्थात् स्थान लीपने में तथा झाड़ू लगाने तथा खाने तथा पीने में पाँच प्रकार से पाप लगते हैं। हे संसारी लोगो! सुनो! इन कारणों से आपको नित पाप लगते हैं। इसलिए दान करना आवश्यक है। ये पाप दान करने से ही नाश होंगे।
"सति स्त्री के लक्षण" स्त्री सो जो पतिव्रत धर्म धरै, निज पति सेवत जोय।। अन्य पुरूष सब जगत में पिता भ्रात सुत होय।। अपने पति की आज्ञा में रहै, निज तन मन से लाग।। पिया विपरीत न कछु करै, ता त्रिया को बड़ भाग।। भावार्थ:- सती स्त्री उसको कहते हैं जो अपने पति से लगाव रखे। अपने पति के अतिरिक्त संसार के अन्य पुरूषों को आयु अनुसार पिता, भाई तथा पुत्र के भाव से देखे यानि बरते। अपने पति की आज्ञा में रहे। मन-तन से सेवा करे, कोई कार्य पति के विपरीत न करे।
Just a timelapse.
गुरु ग्रन्थ साहेब, राग आसावरी, महला 1 के कुछ अंश- साहिब मेरा एको है। एको है भाई एको है। आपे रूप करे बहु भांती नानक बपुड़ा एव कह।। (पृ. 350) जो तिन कीआ सो सचु थीआ, अमृत नाम सतगुरु दीआ।। (पृ. 352) गुरु पुरे ते गति मति पाई। (पृ. 353) बूडत जगु देखिआ तउ डरि भागे। सतिगुरु राखे से बड़ भागे, नानक गुरु की चरणों लागे।। (पृ. 414) मैं गुरु पूछिआ अपणा साचा बिचारी राम। (पृ. 439) उपरोक्त अमृतवाणी में श्री नानक साहेब जी स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि साहिब (प्रभु) एक ही है तथा मेरे गुरु जी ने मुझे उपदेश नाम मन्त्र दिया, वही नाना रूप धारण कर लेता है अर्थात् वही सतपुरुष है वही जिंदा रूप बना लेता है। वही धाणक रूप में भी विराजमान होकर आम व्यक्ति अर्थात् भक्त की भूमिका करता है। शास्त्रविरुद्ध पूजा करके सारे जगत् को जन्म-मृत्यु व कर्मफल की आग में जलते देखकर जीवन व्यर्थ होने के डर से भागकर मैंने गुरुजी के चरणों में शरण ली।
Yosemite comes to life at sunrise
कबीर, न्याय धर्मयुक्त कर्म सब करैं, न कर ना कबहू अन्याय। जो अन्यायी पुरूष हैं, बन्धे यमपुर जाऐं।। भावार्थ:- सदा न्याययुक्त कर्म करने चाहिऐं। कभी भी अन्याय नहीं करना चाहिए। जो अन्याय करते हैं, वे यमराज के लोक में नरक में जाते हैं।