कबीर, न्याय धर्मयुक्त कर्म सब करैं, न कर ना कबहू अन्याय। जो अन्यायी पुरूष हैं, बन्धे यमपुर जाऐं।। भावार्थ:- सदा न्याययुक्त कर्म करने चाहिऐं। कभी भी अन्याय नहीं करना चाहिए। जो अन्याय करते हैं, वे यमराज के लोक में नरक में जाते हैं।
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कबीर, गृह कारण में पाप बहु, नित लागै सुन लोय। ताहिते दान अवश्य है, दूर ताहिते होय।। कबीर, चक्की चौंकै चूल्ह में, झाड़ू अरू जलपान। गृह आश्रमी को नित्य यह, पाप पाँचै विधि जान।। भावार्थ:- गृहस्थी को चक्की से आटा पीसने में, खाना बनाने में चूल्हे में अग्नि जलाई जाती है। चौंका अर्थात् स्थान लीपने में तथा झाड़ू लगाने तथा खाने तथा पीने में पाँच प्रकार से पाप लगते हैं। हे संसारी लोगो! सुनो! इन कारणों से आपको नित पाप लगते हैं। इसलिए दान करना आवश्यक है। ये पाप दान करने से ही नाश होंगे।
Yosemite comes to life at sunrise
Astral Goth Witch
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