कबीर, गृह कारण में पाप बहु, नित लागै सुन लोय। ताहिते दान अवश्य है, दूर ताहिते होय।। कबीर, चक्की चौंकै चूल्ह में, झाड़ू अरू जलपान। गृह आश्रमी को नित्य यह, पाप पाँचै विधि जान।। भावार्थ:- गृहस्थी को चक्की से आटा पीसने में, खाना बनाने में चूल्हे में अग्नि जलाई जाती है। चौंका अर्थात् स्थान लीपने में तथा झाड़ू लगाने तथा खाने तथा पीने में पाँच प्रकार से पाप लगते हैं। हे संसारी लोगो! सुनो! इन कारणों से आपको नित पाप लगते हैं। इसलिए दान करना आवश्यक है। ये पाप दान करने से ही नाश होंगे।
Shrimad Bhagavad Gita Chapter 6 Verse 16
Na, ati, ashnatH, tu, yogH, asti, na, ch, ekaantam, anashnatH, Na, ch, ati, swapnsheelasya, jaagrtH, na, ev, ch, Arjun ||16||
-Translated by Sant Rampal Ji Maharaj
Starbirth with a chance of winds? by NASA Hubble Space Telescope
कबीर, गंगा काडै घर करें, पीवै निर्मल नीर।
मुक्ति नहीं सत्यनाम बिन, कह सच्च कबीर II
कबीर, तीर्थ कर-कर जग मुआ, ऊड़े पानी न्हाय ।
सत्यनाम जपा नहीं, काल घसीटें जाय ।।
tamaratoader
by pepe_soho
Astral Goth Witch
Every soul must do worship but how to find the correct way? Sant Rampal Ji has revealed all hidden secrets of true worship, and worshipable Kabir god.