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"सति स्त्री के लक्षण" स्त्री सो जो पतिव्रत धर्म धरै, निज पति सेवत जोय।। अन्य पुरूष सब जगत में पिता भ्रात सुत होय।। अपने पति की आज्ञा में रहै, निज तन मन से लाग।। पिया विपरीत न कछु करै, ता त्रिया को बड़ भाग।। भावार्थ:- सती स्त्री उसको कहते हैं जो अपने पति से लगाव रखे। अपने पति के अतिरिक्त संसार के अन्य पुरूषों को आयु अनुसार पिता, भाई तथा पुत्र के भाव से देखे यानि बरते। अपने पति की आज्ञा में रहे। मन-तन से सेवा करे, कोई कार्य पति के विपरीत न करे।
सत का सौदा जो करै, दम्भ छल छिद्र त्यागै। अपने भाग का धन लहै, परधन विष सम लागै।। भावार्थ:- अपने जीवन में परमात्मा से डरकर सत्य के आधार से सर्व कर्म करने चाहिए, जो अपने भाग्य में धन लिखा है, उसी में संतोष करना चाहिए। परधन को विष के समान समझें।
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Andromeda Galaxy (by the Association of Widefield Astrophotographers)
कबीर, गंगा काडै घर करें, पीवै निर्मल नीर।
मुक्ति नहीं सत्यनाम बिन, कह सच्च कबीर II
कबीर, तीर्थ कर-कर जग मुआ, ऊड़े पानी न्हाय ।
सत्यनाम जपा नहीं, काल घसीटें जाय ।।