कबीर, कछु कटें सत्संग ते, कछु नाम के जाप। कछु संत के दर्शते, कछु दान प्रताप।। भावार्थ:- भक्त के पाप कई धार्मिक क्रियाओं से समाप्त होते हैं। कुछ सत्संग-वचन सुनने से ज्ञान यज्ञ के कारण, कुछ नाम के जाप से, कुछ संत के दर्शन करने से तथा कुछ दान के प्रभाव से समाप्त होते हैं। जैसे वस्त्र पहनते हैं। मिट्टी-धूल लगने से मैले होते हैं। उनको पानी-साबुन से धोया जाता है। इसी प्रकार नित्य कार्य में पाप लगना स्वाभाविक है। इसी प्रकार वस्त्र की तरह सत्संग वचन, नाम स्मरण, दान व संत दर्शन रूपी साबुन-पानी से नित्य धोने से आत्मा निर्मल रहती है। भक्ति में मन लगा रहता है।
कबीर, जै गुरू परलोक गमन करे, सीख मानियो शीश। हरदम गुरू को साथ जानि, सुमरो नित जगदीश।। यदि गुरू जी सतलोक चले गए तो उनकी शिक्षा को आधार मानकर अपना धर्म-कर्म करते रहिए। अपने गुरूदेव को पल-पल अपने साथ समझकर परमेश्वर का भजन करो, जो गुरू जी ने दीक्षा मंत्र दिए हैं, उनका जाप करते रहो।
The sky was lovely today 🫶🏾
The film of your previous lives will be played in the court of God, in which whenever you obtained a human life, each time you said– ‘Give me one more human life; I will do bhakti for the whole of my life.’ Sacred Book WayOfLiving By SantRampalJiMaharaj
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Distasteful buildings, brilliant sky. Spiderweb view through the trees. New Year’s Day camping tonight!
Lost in the Pages
Between Two Tomes